ज्योतिषशास्त्र का अभ्यास और उस ज्ञान का लोकहित में उपयोग करने के बाद मेरा यह निष्कर्ष है कि, पृथ्वी पर सुख-सुविधाओं की कामना रखने वाला मनुष्य सही अर्थो में सुखी देखने को नहीं मिल रहा है। हर एक व्यक्ति शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से हमेशा चिंतित देखने को मिल रहा है। चिंता और शोक से धिरे हुए विश्व में प्रति सौ व्यक्ति में से पाँच से दस मनुष्य मानसिक अस्थिरता से पीड़ित होते हैं। जिसके कारण आत्महत्या एवं हृदय से जुड़े हुए रोगों की संख्या दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मनुष्य की व्यसन के प्रति आसक्ति भी मानसिक समस्या का ही एक हिस्सा है। मनुष्य की वर्तमान परिस्थिति को देखकर उसके निराकरण के विषय में मेरा मन तर्क-वितर्क करता रहता था और उसके बारे में शास्त्रों का अध्ययन करते हुए जानने को मिला कि मनुष्य का जन्म आत्मोद्धार, आत्मकल्याण करने के लिए हुआ है, लेकिन मनुष्य इस तथ्य और जीवन की सच्चाई को समझ नहीं पाया है। वास्तव में हिन्दू धर्म ने जीवन में उपयोगी और महत्वपूर्ण कहे जाने वाले लक्ष्यांक निश्चित किये हैं। इन चार लक्ष्यांकों को शास्त्र के अनुसार पुरुषार्थ कहा जाता है। ये चार पुरुषार्थ है, धर्म - अर्थ - काम और मोक्ष
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हमारे प्राचीन ऋषिमुनियों ने उनके तपोबल, अभ्यास एवं अवलोकन के माध्यम से मानव को सहायक हो सके ऐसे कई सारे शास्त्रों की रचना की है। जैसे वेद, उपनिषद, योगशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र आयुर्वेदशास्त्र एवं वास्तुशास्त्र आदि। उसके अलावा पुराणों की रचना मानव कल्याण के लिए एक अमूल्य भेंट है।
और पढ़ेंआज के आधुनिक युग में विज्ञान ने बहुत सारे संशोधन और आविष्कार के द्वारा जीवन की कायापलट कर दी है। वर्तमान समय में विज्ञान मानवजाति की सुख-सुविधा के लिए नये-नये उपकरणों का सर्जन करता जा रहा है। जिसकी हम या हमारे पूर्वजों ने कभी कल्पना भी न की होगी।
और पढ़ेंस्वस्थ और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से निरोगी रहना अनिवार्य है । जिसके कारण ही योगसाधना में आसन-प्राणायाम को शामिल किया गया है। जिससे साधना के दौरान शरीर और मन का स्वास्थ्य बरकरार रहे ; लेकिन शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आसन-प्राणायाम के अलावा आयुर्वेद का महत्व भी कुछ कम नहीं है।
और पढ़ेंधर्म की साधना- आर्थिक उन्नति, कामना और मोक्ष ये 4 पुरुषार्थ/धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं।